एनआरसी NRC बिल क्या है,नेशनल सिटीजन रजिस्टर History,इतिहास in Hindi

एनआरसी NRC बिल क्या है,नेशनल सिटीजन रजिस्टर History {इतिहास} NRC बिल भारतीय नागरिकों की पहचान के लिए बनाई गई एक सूची हैं।

जिसको नेशनल सिटीजन रजिस्टर के नाम से जाना गया।

उसी को एनआरसी बिल कहते हैं।

जिसका मकसद है कि देश में अवैध रूप से हो रहे घुसपैठ को पहचान कर रोका जाए।

एनआरसी से पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन अवैध रूप से रह रहा है।

जिनके नाम इसमें शामिल नहीं होते हैं उन्हें अवैध नागरिक माना जाता है।

इसलिए भारत देश में अगर रहना है तो एनआरसी में नाम होना बहुत ही जरूरी है। Pomegranate वीर्य स्पर्म कैसे बढाये

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान यहां बिल 8 जनवरी को लोकसभा में पारित हो चुका है।

लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो सका और सरकार का कार्यकाल समाप्त होने के कारण यहां स्वत: ही समाप्त हो गया। Coranavirus से बचना चहते हो तो ये कम कर लो

एनआरसी NRC बिल केंद्र सरकार की तैयारी

परंतु एक बार फिर इसे कैबिनेट की मंजूरी के साथ लोकसभा में पेश करने की तैयारी मोदी सरकार कर रही है।

एनआरसी NRC बिल नेशनल सिटीजन रजिस्टर बहुत जल्द भारत देश के प्रत्येक राज्य में लागू करने की तैयारी केंद्र सरकार ने कर दी है। डॉ विवेक बिंद्रा की सफलता का राज

क्योंकि सभी राज्यों मैं घुसपैठ की समस्या बढ़ती जा रही है।

इस बिल के आने के बाद से घुसपैठ में कमी आएगी, क्योंकि जो लोग अवैध रूप से राज्य में निवास कर जाते हैं। उनमें एक डर सा माहौल बनेगा और वहां अवैध रूप से घुसपैठ नहीं करेंगे।

देश की राजधानी दिल्ली मैं भी हालात चिंताजनक होते जा रहे है।

लिहाजा यहां भी एनआरसी NRC बिल लागू करना बहुत आवश्यक है।

अवैध रूप से दिल्ली में आकर बसने वाले लोगों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है।

आने वाले समय में यहां समस्या बहुत ही कष्टप्रद होने वाली है।

हमें समस्या से छुटकारा पाने के लिए आज से ही कुछ कड़े कदम उठाने चाहिए। परंतु आपस में ना लड़ते हुए सभी को साथ में पाकर एनआरसी का समर्थन करना चाहिए।

क्योंकि यहां हमारे भविष्य के लिए और हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत ही जरूरी है

बिल को लेकर सरकार का रुख-

भारत देश के गृहमंत्री माननीय अमित शाह ने 20 नवंबर को सदन को बताया कि उनकी सरकार दो अलग-अलग नागरिकता संबंधित पहलुओं को पारित करने जा रही हैं। जिनके नाम है।

पहला सी ए बी

दूसरा पूरे देश में नागरिकों की गिनती कराना

जिसे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानेकि एनआरसी NRC बिल के नाम से पुकारा जा रहा है ।

अमित शाह ने बताया कि सीएबी एक धार्मिक उत्पीड़न होने के कारण

बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, से

31 दिसंबर 1914 से पहले भारत में आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, और ईसाईयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।

उन्होंने बताया कि एनआरसी के जरिए 19 जुलाई 1948 के बाद भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले नागरिकों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर निकालने की एक प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा।

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अगर यहां कानून लागू होता है तो उन लोगों को सोचने की जरूरत है, जो अवैध रूप से भारत के किसी भी राज्य में निवास कर रहे हैं, तो उनको 19 जुलाई 1948 से पहले की अपनी नागरिकता प्रमाणित करना पड़ेगी नहीं करने पर उनको घुसपैठिया मानकर राज्य से निकाल दिया।

अभी भारत देश के किस राज्य में है NRC लागू है –

असम देश का अकेला राज्य है जहां एनआरसी लागू है। राज्य में पहली बार नेशनल सिटीजन रजिस्टर 1951 मैं बना था और उस समय की जनगणना के अनुसार जो शख्स राज्य का नागरिक माना गया था।

उसे सिटीजन रजिस्टर लिस्ट में शामिल किया गया।

बीते कुछ सालों से राज्य में इसे अपडेट करने की मांग जोरों पर रही है। दरअसल कुछ दशकों से पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से घुसपैठ की वारदात बढ़ती जा रही है।

जिससे असम का जनसंख्या संतुलन बिगड़ने लगा है।

इसी वजह से वहां के नागरिकों ने इसे अपडेट करने की मांग की और मांग को लेकर अवैध घुसपैठ के विरोध में कई बार राज्य में हिंसक से हिंसक विरोध प्रदर्शन भी हो चुके हैं।

असम में एनआरसी कार्यालय-

असम एक ऐसा राज्य है जहां पर सन 2013 में एनआरसी कार्यालय बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम 2015 से शुरू हुआ।

पहली लिस्ट 2017 में ,

दूसरी लिस्ट 2018 में

प्रकाशित की गई इस लिस्ट को बनाने में 4 साल का समय लगा 4 साल से 62 हजार कर्मचारी लिस्ट तैयार करने में जुटे थे।

NRC के स्टेट कोआर्डिनेटर प्रतीक हजेला के मुताबिक

अंतिम सूची में 19 लाख 6 हजार 657 लोग बाहर है। हालांकि इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी नागरिकता का कोई दावा पेश नहीं किया है।

अभी तक असम में 3 करोड़ 11 लाख 21 हजार 4 लोगों को वैध माना है।

अंतिम सूची में उन्हीं लोगों के नाम है, जो 25 मार्च 1971 से पहले से असम के नागरिक हैं या उनके पूर्वज राज्य में निवास करते थे। जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन और धारा 370 का इतिहास

उन्हीं को भारत का नागरिक माना जाएगा। इसके बाद आने वाले किसी भी व्यक्ति को भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा।

इसके लिए केंद्र सरकार ने संदिग्ध लोगों की जांच शुरू कर दी है। ऐसे सभी लोगों की जांच का कार्य देश भर में चल रहा है। Narendra Modi की सफलता का राज आपने जाना

इन दिनों NRC चर्चा मैं क्यों है –

एनआरसी की चर्चा तो काफी दिनों से है।

किन्तु हाल ही में भारत देश के गृहमंत्री अमित शाह जी ने संसद के शीतकालीन सत्र 2019 में यहां बयान देकर इसको काफी चर्चा में ला दिया है कि एनआरसी को संपूर्ण भारत वर्ष में लागू करेंगे।

बिल के पास होते ही तमाम उन लोगों को जिन्होंने यहां आस लगा रखी थी कि हमें भारत की नागरिकता मिल जाएगी।

उनको भारत की नागरिकता मिल गई।

देश में लागू हो जाएगा।

कानून बन जाएगा।

सभी नागरिकों को उसका पालन करना आवश्यक हो जाएगा।

देश में जो अवैध रूप से नागरिक रह रहे हैं उनको यहां से जाना होगा और जो आये दिन घुसपैठ हो रही है उसमें कमी आएगी।

एनआरसी NRC बिल से मुस्लिमओ को नुकशान –

एनआरसी बिल से ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि यह मुस्लिमों के हित में नहीं है, लेकिन माननीय गृह मंत्री अमित शाह जी ने संसद में यह बात रखी की

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एनआरसी NRC बिल मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है।

यहां सब के हित के लिए है।

उन्होंने कहा कि यहां बिल मुस्लिमों को 0.01 परसेंट भी नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

गृहमंत्री अमित शाह के देश में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एनआरसी NRC बिल कानून बनाने के बयान के बाद से लोगों में हड़कंप मचा है।

भारतीय नागरिकता प्रमाणित के लिए सन 1971 के बाद भारत में जन्मे या घुसपैठ से आए लोग खासकर एक विशेष वर्ग के परिवारों ने जिनके पास अभी तक जन्म से संबंधित कोई भी प्रमाण पत्र नहीं है।

उन्होंने नगर निगम से जन्म प्रमाण पत्र लेने के लिए आवेदन देना शुरू कर दिए हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार बीते कुछ माह में नगर निगम में 3 हजार से भी ज्यादा जन्म प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर चुके हैं।

लेकिन नगर निगम ने 50 से 60 ही जन्म प्रमाण पत्र जारी किए हैं, और बाकी के आवेदनों की बारीकी से जांच चल रही है।

एनआरसी NRC लिस्ट से असंतुष्ट

एनआरसी NRC लिस्ट से असंतुष्ट लोगों को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील करने का अधिकार रहेगा।

यहां पर संतुष्ट नहीं होने पर हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकेंगे,

लोगों को राज्य सरकार भी कानूनी मदद देगी

उनको वहां सभी अवसर प्रदान किए जाएंगे जिससे कि वहां अपनी नागरिकता साबित कर पाए।

सरकार की सभी लोगों से अपील है कि घबराए नहीं एवं देश की सरकार पर विश्वास रखें किसी के साथ भी अन्याय नहीं होगा।

सभी की हर संभव मदद की जाएगी।

सरकार का कहना है कि एनआरसी से बाहर होने वाले लोगों के मामले की सुनवाई के लिए राज्य में

1000 से भी ज्यादा ट्रिब्यूनल बनाए हैं।

जिसमें लोगों को अपील करने के लिए अवसर दिए जा रहे हैं।

असम NRC प्रक्रिया के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य –

मई 2005 -केंद्र सरकार, असम सरकार और आसू (ऑल असम स्टूडेंट यूनियन)के प्रतिनिधियों के बीच त्रिपक्षीय बैठक हुई।

जिसके अध्यक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे,

जो इनके बीच संधि हुई उसमें 1985 के वादों को पूरा करने के लिए सहमति बनी

एनआरसी को अपडेट करने के लिए तीनों पक्षों के बीच सहमति बनी

जुलाई 2009- असम के एक NGO (गैर सरकारी संगठन) ने उन प्रवासियों के नाम मतदाता सूची से हटाने की मांग की

जिन्होंने अपने दस्तावेज जमा नही कराए थे।

इस प्रकार पहली बार एनआरसी प्रक्रिया का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा।

एनजीओ ने कोर्ट से यहां भी अनुरोध किया है कि एनआरसी प्रक्रिया जल्दी से शुरू करवाई जाए।

अगस्त 2013 -असम NGO पब्लिक वर्क्स की याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई शुरू की।

दिसंबर 2013-एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए

उच्चतम न्यायालय ने आदेश जारी किए।

फरवरी 2015- अवैध रूप से रह रहे हैं। अप्रवासियों की पहचान के लिए उच्चतम न्यायालय ने

दिसंबर 2013 में एनआरसी को अपडेट करने के आदेश जारी कर दिए थे।

लेकिन प्रक्रिया में देरी होने के कारण

यहां फरवरी 2015 में जाकर शुरू हुई।

एनआरसी के ड्राफ्ट शुरुआत

31 दिसंबर 2017-एनआरसी का पहला ड्राफ्ट सरकार ने इसी दिन जारी किया था।

30 जुलाई 2018-यह वही तारीख है जिसमें एनआरसी का

दूसरा ड्राफ्ट जारी किया गया था।

इस ड्राफ्ट मैं राज्य के 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ नागरिकों को वैध माना गया।

ड्राफ्ट में 40 लाख से भी ज्यादा लोगों का नाम शामिल नहीं किया गया।

31 दिसंबर 2018-एनआरसी का अंतिम हिस्सा जारी करने के लिए

सरकार ने यही तारीख तय की थी

किंतु काम पूरा नहीं होने के कारण

ड्राफ्ट को आगे बढ़ा दिया गया।

26 जून 2019-सरकार ने एनआरसी से बाहर रहने वाले लोगों की सूची पर

एक अतिरिक्त सूची प्रकाशित की

जिसमें कुल 102462 नाम थे।

इस मसौदे के आने के बाद बाहर रहने वालों की

संख्या 41 लाख 10169 हो गई।

31 जुलाई 2019-एनआरसी नेशनल सिटीजन रजिस्टर की

आखिरी लिस्ट सरकार ने जारी कर दी।

लेकिन उसी समय राज्य में अत्यधिक बारिश हो जाने के कारण बाढ़ का हवाला देते हुए इसे 31 अगस्त तक के लिए आगे बढ़ा दिया गया था।

असम में एनआरसी का इतिहास एवं अप्रवासियों की समस्या का मूल कारण –

असम में अवैध आप्रवासी की समस्या आज से नहीं है, यहां ब्रिटिश राज से ही चली आ रही है।

यह की भौगोलिक स्थिति एवं उपजाऊ मिट्टी से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार, यह पर चाय के बागान एवं सैनिकों की छावनी बनाना चाहती थी।

लेकिन कुशल श्रमिकों की समस्या से ब्रिटिश सरकार को परेशानी आ रही थी।

क्योंकि यहां पर श्रमिकों की उपलब्धता ना के बराबर थी।

श्रमिकों की कमी की समस्या को देखते हुए

ब्रिटिश सरकार ने सन 1826 में असम को बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना दिया।

भारत की आजादी 1947 तक देश में आप्रवासियों की संख्या लाखों में बढ़ चुकी थी और इसी

कारण यहां के जो मूल निवासी थे वह अल्पसंख्यक हो गए हैं।

असम में देश की अजादी के बाद की स्थिति-

15 अगस्त 1947 को भारत देश को आजादी मिली।

बंटवारे के समय से ही आ प्रवासियों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही थी।

पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) से भी आप्रवासी की संख्या बढ़ रही थी।

इसके अलावा 1971 युद्ध के दौरान भी भारत देश ने बांग्लादेशीय नागरिकों को शरणार्थी

के रूप में अपनाया। इसके बाद भी अवैध रूप से बांग्लादेशी आ- प्रवासियों की

संख्या बढ़ती जा रही थी।

https://en.wikipedia.org/wiki/National_Register_of_Citizens_of_India

आजादी के बाद देश की जनसंख्या 22% से 25% के बीच में बढ़ी,

लेकिन असम की जनसंख्या में 35% से 36% की दर से बढ़ोतरी हुई।

इस बढ़ी हुई जनसंख्या का एक मात्र कारण देश में अवैध रूप से घुसपैठ को माना गया जो बांग्लादेश से हो रही थी।

इसी कारण अपने ही राज्य में यहां की मूलनिवासी जातियां अल्पसंख्यक बनकर रह गए गई।

इन अ- प्रवासियों घुसपैठियों के कारण असम में कई बार हिंसक प्रदर्शन हो चुके हैं।

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